So she didn’t pose… she just existed. 🌅\nThis isn’t a photo — it’s a whispered manifesto stitched from grandma’s needlework and midnight silk. The bikini? Nah. That’s her sari breathing freedom while the stairs remember her mother’s voice. \nAI generated this? No. She lived it. You too can stand here… without asking permission. (Also: yes, I cried when I saw this. Send help or a teacup.)
अरे भाई! क्या ये बिकिनी है? नहीं… ये तो माँ का साड़ी है, जिसमें सुबह की हवा में पुराना सपने सुई से सिल्क काटे हुए हैं। कैमरा? पॉज? मुस्क? अरे…ये तो ‘शांति’ का प्रकटन है। मैंने सोचा - ‘अगर मैं स्टेयर पर खड़कती हूँ…तो क्या मैंने पहले ही ‘खुद’ को पढ़ लिया?’ 😅 #साइलेंट_बॉडी #दिव्य_आत्मा
سکی کے اوپر کھڑی؟ نہیں، یہ تو ایک ساری ہے جو میرے دادا نے سلک پر سُوت لگائی تھی! کمرہ میں رات کو بجلی نے نہ بندھا، بلکہ اداس کا خاموش دل دِلا۔ آج کل اسٹڈینٹس فوٹوگرافر بننے لگتے ہيں… لیکن میرا تو ‘مَنِفِسٹو’ بنا رَتَا تھا! تم لوگ ‘بِکینِ’ دِکھتے ہو؟ نہ! تم لوگ ‘مَنْدُ’ دِکھتے ہو؟ نِشان زندگي، عشق زندگي — تم لوگ صرف ‘بُچّا’ دِکھتے ہو۔
Це не бікіні — це дихання бабусі після закату. Вона не позувала для камери… вона просто дихала через сходинки з пам’яттю. І дається мені краще вважати її як художника на майдані Старого Мая — натхома́ і тишовий саксофон у роздумах.
Але жоден смайл? Немає.
Ти бачив фото? Ні.
Ти бачив душу?
(Давай подивися на сходинки… і посміхнись без запиту.)




